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उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया वह रात चांदनी रही सखी, साजन निद्रा में लीन रहा आँखों में मेरी पर नींद नहीं, मैंने तो देखा स्वप्न नया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया सोते साजन के बालों को, हौले – हौले सहलाय दिया माथे पर एक चुम्बन लेकर, होठों में होठ घुसाय दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया साजन के होठों से होंठ मेरे, चिपके जैसे कि चुम्बक हों साजन सोते या जागते हैं, अंग पे हाथ फेर अनुमान किया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया दस अंगुल का विस्ता Leggi altre informazioni